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मंगलवार, 15 जून 2021

खनक टूटी हुई चूड़ियों की...

  उसकी शादी को कई साल हो गए थे, मगर आज भी जब वो खाली बैठती थी तो शादी के ठीक पहले वाले दिन याद करती थी । कैसे उसके माँ बाप ने उसके लिए सपने देखे थे और उन सपनों को पूरा करने के लिए कई लड़के देख चुके थे । कैसे दो ही मुलाकातों में उन्हें कुछ अजनबियों पर इतना यकीन हो गया था कि उसकी सारी जिंदगी, सारे ख्वाब, सारी खुशियाँ उनके हवाले करने को तैयार हो गए थे । कैसे अपने माँ बाप के यकीन और अपने ससुराल वालों की भोली शक्लों और चिकनी बातों पर उसने भी ऐतबार कर लिया था ।  



  दिन भर घर के कामों में उलझी, सब कुछ भूल जाती है वो मगर जैसे जैसे रात ढलती जाती है वैसे वैसे उसका हृदय भारी सा होने लगता है । रात के अंधेरे उसके दिल में उतरते जाते हैं । सारे मंजर हर रात नए से हो जाते हैं, सारे जख्म खुद-ब-खुद ताजे होते जाते हैं । सोचती है वो कि उसकी जिन खुशियों के लिए उसके माँ बाप ने जीवन भर की मेहनत की कमाई लुटा दी थी, आखिर वो खुशियाँ हैं कहाँ ? सोचती है वो कि शादी से पहले उसके ससुराल वालों की बातों से जो अमृत टपकता था वो शादी के बाद अचानक कहाँ चला गया ? कैसे आखिर दहेज में मिले सामानों और रुपयों का मोल उसकी जिंदगी के मोल से बढ़कर हो गया था ? पहली ही मुलाकात में पायलों और झुमकों के वादे करने वाले शख्स ने क्यूँ इतने साल सिर्फ बदन को अनगिनत निशान और बेहिसाब दर्द दिए ? 


   हर रात उसकी ख्वाहिशें, उसकी तमन्नाएं फिर से जागती हैं और हर रात वो उन्हें फिर से दफ्न कर देती है । हर रात वो अपने थके हुए शरीर को तैयार करती है फिर अगले दिन ढेर सारा काम करने और कुछ नए जख्म झेलने के लिए । जिसको जमाना कमज़ोर कहता है उसमें कितनी हिम्मत छुपी है, ये रात के अंधेरों में राज बनके खो जाती है । 



  अगली सुबह फिर से वो सबके उठने से पहले ही उठ के घर के काम में लग जाती है । चूड़ियों के खनखनाने की आवाज पूरे घर में हल्के हल्के सुनाई देती है । हाँ, मगर उस खनखनाने की आवाज में मिठास नहीं बल्कि दर्द नजर आता है । चूड़ियाँ अभी टूटी नहीं हैं, मगर टूट चुकी हैं ।

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