उसकी शादी को कई साल हो गए थे, मगर आज भी जब वो खाली बैठती थी तो शादी के ठीक पहले वाले दिन याद करती थी । कैसे उसके माँ बाप ने उसके लिए सपने देखे थे और उन सपनों को पूरा करने के लिए कई लड़के देख चुके थे । कैसे दो ही मुलाकातों में उन्हें कुछ अजनबियों पर इतना यकीन हो गया था कि उसकी सारी जिंदगी, सारे ख्वाब, सारी खुशियाँ उनके हवाले करने को तैयार हो गए थे । कैसे अपने माँ बाप के यकीन और अपने ससुराल वालों की भोली शक्लों और चिकनी बातों पर उसने भी ऐतबार कर लिया था ।
दिन भर घर के कामों में उलझी, सब कुछ भूल जाती है वो मगर जैसे जैसे रात ढलती जाती है वैसे वैसे उसका हृदय भारी सा होने लगता है । रात के अंधेरे उसके दिल में उतरते जाते हैं । सारे मंजर हर रात नए से हो जाते हैं, सारे जख्म खुद-ब-खुद ताजे होते जाते हैं । सोचती है वो कि उसकी जिन खुशियों के लिए उसके माँ बाप ने जीवन भर की मेहनत की कमाई लुटा दी थी, आखिर वो खुशियाँ हैं कहाँ ? सोचती है वो कि शादी से पहले उसके ससुराल वालों की बातों से जो अमृत टपकता था वो शादी के बाद अचानक कहाँ चला गया ? कैसे आखिर दहेज में मिले सामानों और रुपयों का मोल उसकी जिंदगी के मोल से बढ़कर हो गया था ? पहली ही मुलाकात में पायलों और झुमकों के वादे करने वाले शख्स ने क्यूँ इतने साल सिर्फ बदन को अनगिनत निशान और बेहिसाब दर्द दिए ?
हर रात उसकी ख्वाहिशें, उसकी तमन्नाएं फिर से जागती हैं और हर रात वो उन्हें फिर से दफ्न कर देती है । हर रात वो अपने थके हुए शरीर को तैयार करती है फिर अगले दिन ढेर सारा काम करने और कुछ नए जख्म झेलने के लिए । जिसको जमाना कमज़ोर कहता है उसमें कितनी हिम्मत छुपी है, ये रात के अंधेरों में राज बनके खो जाती है ।
अगली सुबह फिर से वो सबके उठने से पहले ही उठ के घर के काम में लग जाती है । चूड़ियों के खनखनाने की आवाज पूरे घर में हल्के हल्के सुनाई देती है । हाँ, मगर उस खनखनाने की आवाज में मिठास नहीं बल्कि दर्द नजर आता है । चूड़ियाँ अभी टूटी नहीं हैं, मगर टूट चुकी हैं ।
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