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आखिरी चिराग़
रेलवे स्टेशन की भाग दौड़ में भागते भागते, मेरे कदम अचानक से सीढ़ियों पर ठठक के रुक पड़े । मेरा ध्यान गया उन चेहरों पर जो शायद एक उम्र से भी पुराने थें । जिनका पूरा बदन सूख के कांटे की तरह सिकुड़ गया था या यूं कहें कि...Read More

खनक टूटी हुई चूड़ियों की...
 उसकी शादी को कई साल हो गए थे, मगर आज भी जब वो खाली बैठती थी तो शादी के ठीक पहले वाले दिन याद करती थी । कैसे उसके माँ बाप ने उसके लिए सपने देखे थे और उन सपनों को पूरा करने के लिए कई लड़के देख चुके थे । कैसे दो ही मुलाकातों में उन्हें कुछ अजनबियों पर इतना यकीन हो गया था कि...Read More

मासूम सी वो मुस्कुराहट
अपनी परेशानियों को ख्यालों में कई गुना बढ़ाते-बढ़ाते, मैं बोझिल कदमों से चलता जा रहा था । ध्यान मेरे रास्तों पर और सब्जियों पर नहीं था । मैं अपने ख्यालों में ही कहीं गुम था, या यूं कहूं कि...Read More



























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